एहसास- ए- जिंदगी
बहक जाना कितना आसान है
खुद से दूर हो जाना
इतना की दूरी का एहसास ही ना रहे
बहक गए हैं, पता ही ना चले
मौसम सर्द है, तो धूप की सेक में
गर्म है, तो पेड़ों की छाओं में
या मीं की बूँदें
या सिर्फ मचलती हवा
और इसकी छुअन से थिरकती पेड़ों की पत्तियाँ
पड़ोस में पसरी जन आबादी
मुंढेरों पर बैठे इक्ले दुक्ले कबूतर
नीला अम्बर
भूरा ततैया
कुछ वक्त इनके पास, इनके लिए
ये श्रृष्टि का अंश हैं.... या यहीं हैं
इसी उलझन में बहकना कहीं बहक जाता है
फिर से सब आसान सा लगता है
जिंदगी एहसास ही तो है बस
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