संवाद
संवाद.. मन में सुगंध जैसा बिखरा हुआ
ओझल, अनछुआ सा
संवाद, लोगों के बीच, जो है भी..... नहीं भी
संवाद का ना कोई सार है, ना किनारा
कोई ज़मीन भी नहीं, कहाँ टिका है संवाद?
जीवन पग पग बढ़ रहा है.... या घट रहा है?
उलझनों में बरस रहा है संवाद
निरर्थक, बेचैन सा
बिन पेंदे के लोटे की तरह
संवाद मेरा है या किसी और का?
ये मंन स्थिति समझ नहीं पाता
खामोशी में चीखता है संवाद....
फँसा है कहीँ
ज़मीन की सिलवटों में, या अम्बर की परतों में?
या फिर बस झूल रहा है, समय की तलहटी पर
संवाद सबके साथ भी है और अकेला भी
काला भी, सफ़ेद भी...... गहरा और सतही
रंग भी दिखते हैं कभी कभी
कभी मंद पड़ जाता है
संवाद.... इस छोर से.........................
..............ना जाने कहाँ तक...
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Samwaad dilo se dil tak, dil se dilo tak, anant Samwaad
ReplyDeleteहृदयस्पर्षी
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