खाड़िया में लिपा वो गाँव - भाग 1

वो छोटा सा घर, चौपाल के सामने

संकरी गली, खुली बेतरतीब नालियाँ

दस कदम दूरी पर सरकारी नलका

नलके के हत्थे के छोर का स्वाद

और उसका रंग.... किनारे से घिसा हुआ

कितने सारे घरों के बीच में था वो.... 

कई बार तो उसी के तने पर बाँधकर गाँव वाले अपनी भैंसे भी नेहला लिया करते

छत की मुंडएर पर नीम की टेहनियों का छूना, बढ़ना और वहीं छत से नीचे सपेरे को अपना खेल दिखाते देखना

गाँव की दोपहर में कहानी वाली चुड़ैल से डरना, जो बच्चे उठा ले जाती

शायद डर की नीव वहीं डली

दीवार के आले में सेंजी लगाना

वो दुकड़ियाँ में बिछा तखत

वहीं बैठकर दरवाज़े के बाहर चौपाल पर घटती बड़ती भीड़ देखना

पड़ोस की वो तुतलाती 'डॉली'

शायद मेरी सबसे पहली सहेली, उसका वो अतरंगी बड़ा भाई

फूल गोभी के कीड़े खाने की शर्त लगाता

वो दादा की उम्र का 'रतिया' जिसे बच्चे बूढ़े सब नाम से बुलाते

बताते हैं परदादा के भाई उसे कहीं दूर दराज़ से उठाकर ले आये

घर के ठीक पीछे वो भूरी आँखों वाली चंचल चाची

और उनके दो अव्वल शैतान लड़के 

घर के बायीं ओर 'कटार बाबा' की महकती दुकान 

उनकी कंजूसी और बेअतबि किस्सों में मशूर थी

और इन्ही किस्सों की वजह से गाँव वाले 'रावण चाचा' की दुकान पर जाने लगे

क्या सोचकर उन्हें ये नाम दिया गया ?? 




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Unmukt Anu 😊





Comments

  1. Mam yaha ke ham Sikandar TV shows se life ke bare me aur Jana aur sikha bhi

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  2. Hi Anu Mam, Nice Post. Keep the good work. Stay Strong.
    You are really a great inspiration for all. Remembering days in Army School Meerut :)

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